

महर्षि वैदिक गुरु परंपरा

जीवन के एकीकरण के शाश्वत ज्ञान के संरक्षकों की पवित्र गुरु परंपरा, जीवन के विषय में समझ के पुनरुत्थान के आधार रूप है, जो समय-समय पर मनुष्य को विकास के पथ पर उचित रूप से प्रशस्त करने, मनुष्य को सुरक्षित रखने हेतु और उसे एक सार्थक जीवन जीने के लिए जाग्रत बनाये रखती है। गुरु परंपरा के गुरुजन सत्य के प्रतिपादक रहे हैं, अति प्राचीन काल से समय-समय पर उन्होंने व्यावहारिक जीवन के शाश्वत सत्य का प्रतिपादन किया है और जीवन जीने के ऐसे मानक निर्धारित किए जो मनुष्य को पीढ़ी दर पीढ़ी सफल जीवन जीने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ।
महर्षि संस्थान में ज्ञान की समस्त धाराएं इन महान गुरुजनों के नाम पर और उनकी ओर से ही प्रवाहित होती हैं और ज्ञान की यह धाराएं प्रत्येक शिक्षक को गुरुजनों की अनमोल पंक्ति के साथ हर पीढ़ी में जोड़ती हैं । विश्व भर के भावातीत ध्यान के शिक्षक भी महान गुरुजनों की इस सनातन और सार्वभौमिक परंपरा की उपज हैं।
हमारी पवित्र वैदिक गुरुपरंपरा भगवान नारायण से, कमल में जन्मे ब्रह्मा से, ब्रह्मऋषि वशिष्ठ से महर्षि शक्ति और उनके पुत्र महर्षि पाराशर से, वेद व्यास को, शुकदेव को, महान गौड़पादाचार्य को, गोविंदाचार्य को, श्री आदि-शंकराचार्य को पदम पादाचार्य को, हस्त-मलकम् को, त्रोटकाचार्य को और फिर वर्तिक-कार तक आयी है ।
महर्षि वैश्विक संगठन की परंपरा के अनुसार, संस्थान का प्रत्येक कार्य पवित्र वैदिक गुरुपरंपरा के आह्वान और पूजन के पश्चात् ही प्रारम्भ होता है।